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Thursday, 20 March 2025

क्लाउड कंप्यूटिंग क्या है?

Cloud Computing in Hindi – क्लाउड कंप्यूटिंग क्या है?

  • Cloud Computing एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जिसमें data और program को इंटरनेट में स्टोर और एक्सेस किया जाता है.
  • दूसरे शब्दों में कहें तो, “क्लाउड कंप्यूटिंग एक तकनीक है जिसके द्वारा data या information को इन्टरनेट की सहायता से स्टोर, मैनेज और retrieve किया जाता है.”
  • Cloud computing को हिंदी में “बादल या मेघ कंप्यूटिंग” कहते हैं.
  • क्लाउड कंप्यूटिंग एक प्रकार की डिलीवरी होती है जिसमे इंटरनेट पर होस्ट की गई सेवाएं (service) शामिल है।
  • क्लाउड कंप्यूटिंग में कई प्रकार के resources शामिल होते है जैसे कि – डेटा स्टोरेज, सर्वर, डेटाबेस, नेटवर्किंग, और एप्लीकेशन।
  • जब भी हम कोई data कंप्यूटर में स्टोर करते हैं तो हम उसे हार्ड डिस्क में स्टोर करते हैं परन्तु क्लाउड कंप्यूटिंग के द्वारा हम अपने data को cloud में स्टोर कर सकते हैं.
  • Cloud जिसे हम हिंदी में बादल या मेघ कहते है; ये cloud डेटा से भरे रहते है। जो बादल आसमान में होते है उनमें पानी भरा रहता है जबकि क्लाउड में ‘digital data’ भरा रहता है और ये cloud कहाँ रहते है?-“बहुत ही बड़े कंप्यूटरों पर” जिन्हें server कहा जाता है।
  • उदाहरण के लिए – facebook में हम images और files को देखते है, ये सभी images और files क्लाउड पर store रहती है।
  • क्लाउड कंप्यूटिंग को विकसित करने के लिए हार्ड डिस्क, डेटाबेस और सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन का प्रयोग किया जाता है।
  • क्लाउड कंप्यूटिंग किसी बिज़नेस या फर्म के लिए काफी लोकप्रिय तकनीक है क्योकि यह खर्चे को कम करती है, productivity (उत्पादकता) को बढ़ाती है , सुरक्षा को बेहतर बनाती है और परफॉरमेंस की बढ़ाती है। यह उन organization के लिए एक बेहतर विकल्प है जिन्हे ज्यादा मैमोरी स्पेस की ज़रूरत पड़ती है और समय समय पर बैकअप लेना पड़ता है।
  • इस तकनीक में जो सेवाएं होती है वह प्राइवेट और पब्लिक दोनों हो सकती है। इन सेवाओं को तीन केटेगरी में बाटा गया है, पहला IaaS, दूसरा PaaS और तीसरा SaaS .
  • क्लाउड कंप्यूटिंग के उदाहरण हैं:- Google cloud, Amazon aws और Microsoft azure आदि.
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Types of Cloud Computing in Hindi – क्लाउड कंप्यूटिंग के प्रकार

क्लाउड कंप्यूटिंग के 4 प्रकार होते हैं:-

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1- Public Cloud

  • पब्लिक क्लाउड वह क्लाउड होते है जो यूजर को इंटरनेट पर क्लाउड सेवाएं प्रदान करते है। पब्लिक क्लाउड को third party (जैसे कि – Amazon, Microsoft और Google आदि) के द्वारा मैनेज किया जाता है।
  • Public Cloud का इस्तेमाल कोई भी व्यक्ति इंटरनेट की मदद से कर सकता है. इसमें कोई भी व्यक्ति data को स्टोर और एक्सेस कर सकता है.
  • पब्लिक क्लाउड में pay-per-use के हिसाब से पैसे देने पड़ते है अर्थात् इसका आप जितना इस्तेमाल करते हैं आप को उतने ही पैसे देने पड़ते है.
  • यह उन लोगो के लिए बेहतर विकल्प है जिनके पास कम पैसा होता है। यह क्लाउड एक समय में एक से ज्यादा यूजर को सेवा प्रदान करता है।
  • पब्लिक क्लाउड के उदाहरण – IBM SmartCloud Enterprise, Microsoft, Google App Engine, और Windows Azure Services Platform आदि.

इस क्लाउड में कंप्यूटिंग रिसोर्सेज को CSP (क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर) के द्वारा मैनेज किया जाता है।


2- Private Cloud

  • प्राइवेट क्लाउड वह होते है जो प्राइवेट इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करते है। इसे internal या corporate cloud के नाम से भी जाना जाता है।
  • प्राइवेट क्लाउड वे क्लाउड होते है जिनका इस्तेमाल प्राइवेट कंपनी के द्वारा किया जाता है। प्राइवेट क्लाउड का इस्तेमाल कंपनी के द्वारा डेटा को मैनेज करने और अपने डेटा सेंटर बनाने के लिए किया जाता है।
  • Private cloud की सुरक्षा बहुत ही अधिक होती है इसमें firewall का इस्तेमाल data को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है।
  • इस क्लाउड को यूजर के द्वारा मैनेज किया जाता है और इसको क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर कोई सेवाएं प्रदान नहीं करते।
  • इस क्लाउड को स्थान और मैनेजमेंट के आधार पर दो भागो में बाटा गया है :- पहला On-premise प्राइवेट क्लाउड और दूसरा Outsourced प्राइवेट क्लाउड।

3- Hybrid Cloud

  • हाइब्रिड क्लाउड पब्लिक और प्राइवेट क्लाउड का combination होता है अर्थात् यह पब्लिक क्लाउड और प्राइवेट क्लाउड से मिलकर बना होता है। इस क्लाउड में पब्लिक और प्राइवेट क्लाउड दोनों की विशेषताए होती है।
  • हाइब्रिड क्लाउड को heterogeneous cloud भी कहते है यह पब्लिक और प्राइवेट दोनों की सेवाएँ प्रदान करता है।
  • हाइब्रिड क्लाउड उन organization या company के लिए बेहतर होते है जिन्हे अधिक सुरक्षा की ज़रूरत होती है।
  • इस क्लाउड की सुरक्षा public cloud से तो अच्छी होती है परन्तु private cloud से कम होती है.
  • हाइब्रिड क्लाउड के उदाहरण है – Gmail, Google Apps, Google Drive, और MS Office आदि.

4- Community Cloud

  • कम्युनिटी क्लाउड एक प्रकार का distributed system है इसे बहुत सारें organizations के द्वारा access किया जाता है और इसके द्वारा ये organizations आपस में data को share करती है।
  • इस क्लाउड को एक या एक से अधिक organization या थर्ड पार्टी के द्वारा मैनेज किया जाता है। सुरक्षा के मामले में यह क्लाउड अच्छे होते है।
  • दूसरे क्लाउड की तुलना में यह काफी सस्ते होते है। यह पब्लिक क्लाउड की तुलना में अधिक सुरक्षित होते है।
  • कम्युनिटी का उदाहरण – Health Care community cloud है.
  • Advantages of Cloud Computing – क्लाउड कंप्यूटिंग के फायदे

1- क्लाउड कंप्यूटिंग में डेटा को स्टोर करना और उसका बैकअप लेना आसान होता है।

2- इसमें जानकारी को शेयर करना आसान होता है।

3- इसमें यूजर इंटरनेट का इस्तेमाल करके दुनिया में कहीं से भी क्लाउड में स्टोर की गई जानकारी को एक्सेस कर सकता है।

4- क्लाउड कंप्यूटिंग में जिन सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का इस्तेमाल किया जाता है उन्हें मेन्टेन करने में कम खर्चा आता है।

5- इसमें यूजर मोबाइल के माध्यम से डेटा को एक्सेस कर सकता है।

6- इसमें यूजर जिन सेवाओं को खरीदता है उसके लिए उसे केवल उन्ही के पैसे देने पड़ते है।

7- क्लाउड कंप्यूटिंग में डाक्यूमेंट्स , चित्र , ऑडियो , वीडियो जैसे डेटा को स्टोर करने के लिए ज्यादा मैमोरी स्पेस मौजूद होता है

- यह यूजर के डेटा को सुरक्षित रखने के लिए फ़ायरवॉल का इस्तेमाल करता है जिसके कारण यूजर का डेटा सुरक्षित रहता है।

Disadvantages of Cloud Computing– क्लाउड कंप्यूटिंग के नुकसान

1- क्लाउड कंप्यूटिंग में यदि हमारे पास एक अच्छा इंटरनेट कनेक्शन नहीं है तो हम डेटा और फाइलों को एक्सेस नहीं कर सकते ।

2- इसका सबसे बड़ा नुकसान है। इसमें अपनी सेवाओं को एक customer से दुसरे customer के पास ट्रांसफर करने के लिए organization या कंपनी को कई समस्याओ का सामना करना पड़ता है।

3- हम सभी यह जानते है की क्लाउड कंप्यूटिंग को सर्विस प्रोवाइडर के द्वारा मैनेज और कण्ट्रोल किया जाता है जिसके कारण यूजर बहुत कम इसकी सेवाओं को कण्ट्रोल और एक्सेस कर पाते है।

4- क्लाउड कंप्यूटिंग सुरक्षा के मामले में अच्छा होता है लेकिन इसके बावजूद इसमें डेटा को ट्रांसफर करते वक़्त hackers डेटा की चोरी कर सकते है।

Applications of Cloud Computing– क्लाउड कंप्यूटिंग के अनुप्रयोग

इसका उपयोग निम्नलिखित जगहों पर किया जाता है:-

1- Online Data Storage (डेटा को ऑनलाइन स्टोर करने के लिए)

क्लाउड कंप्यूटिंग का उपयोग क्लाउड स्टोरेज पर file , image और वीडियो को स्टोर करने के लिए किया जाता है। यह डेटा और फाइलों को क्लाउड स्टोरेज का एक्सेस प्रदान करता है।

इसके अलावा इसका उपयोग organization के द्वारा बड़ी मात्रा में डेटा को स्टोर और एक्सेस करने के लिए किया जाता है।

2- Backup and Recovery (बैकअप लेने के लिए)

इसका इस्तेमाल डेटा का बैकअप लेने के लिए किया जाता है। इसमें खोये हुए डेटा को दोबारा प्राप्त करने के लिए बहुत से टूल होते है जो खोये हुए डेटा को retrieve करते है।

किसी खोये हुए डेटा को दोबारा प्राप्त करना काफी मुश्किल होता है लेकिन क्लाउड कंप्यूटिंग में ऐसा नहीं है। इसमें डेटा को रिकवर करना काफी आसान होता है।

3- Big Data Analysis (बिग डेटा एनालिसिस में)

क्लाउड कंप्यूटिंग का इस्तेमाल बड़ी बड़ी कंपनियों के द्वारा स्टोर डेटा को analyze करने के लिए किया जाता है। हम सभी जानते है की बड़ी मात्रा में किसी डेटा को analyze करना कितना मुश्किल काम होता है लेकिन क्लाउड कंप्यूटिंग ने इस काम को आसान बना दिया है।

4- Testing and Development (टेस्टिंग और डेवलपमेंट में)

इसका इस्तेमाल किसी एप्लीकेशन को test और develop करने के लिए किया जाता है। इसमें एप्लीकेशन को विकसित करना और उसे टेस्ट करना बहुत ही आसान है.

Cloud computing में बहुत सारें tools होते हैं जिनके द्वारा किसी भी application को आसानी से विकसित और test किया जा सकता है.

5- Antivirus (एंटीवायरस के लिए)

क्लाउड कंप्यूटिंग में एक प्रकार का एंटीवायरस सॉफ्टवेयर होता है जो बिज़नेस में मौजूद सिस्टम पर निगरानी रखता है और उन्हें वायरस से सुरक्षित करता है।

जब क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक नहीं थी तो बिज़नेस को अपने कंप्यूटर पर एंटीवायरस सॉफ्टवेयर को इनस्टॉल करना पड़ता है लेकिन अब ऐसा नहीं है क्योकि इसमें पहले से ही एंटीवायरस एप्लीकेशन होता है।

6- E-commerce (ई-कॉमर्स में)

क्लाउड कंप्यूटिंग का इस्तेमाल e-commerce में किसी भी product के डेटा को ऑनलाइन स्टोर करने के लिए किया जाता है.

online product खरीदने और बेचने का एक फायदा यह भी है कि व्यापारी और customer दोनों direct एक दुसरे से जुड़ पाते है और कस्टमर को खुद दुकान में जाने की जरूरत नही पड़ती। सामान घर मे पहुंच जाता है।

7- Education (शिक्षा में)

क्लाउड कंप्यूटिंग का इस्तेमाल शिक्षा के छेत्र में भी किया जाता है। जैसे इ-लर्निंग , ऑनलाइन डिस्टेंस प्रोग्राम लर्निंग , और स्टूडेंट इनफार्मेशन पोर्टल।

यह सभी कार्य क्लाउड कंप्यूटिंग के कारण सम्भव हो पाए है। इस तकनीक ने स्टूडेंट्स को नए तरीके से पढ़ाई करने के लिए एक बेहतर वातावरण प्रदान किया है जिसके कारण पढ़ाई करना अब और भी ज्यादा आसान बन गया है।

आज के समय में दुनिया के हर कोने में online शिक्षा दी जा रही है। जिसमे क्लाउड कंप्यूटिंग की बहुत बड़ी भूमिका है।

8- E-Governance में

आजकल क्लाउड कंप्यूटिंग का इस्तेमाल सभी सरकारी कामो को पूरा करने के लिए भी किया जाता है। आज सरकार की ऐसी कोई  संस्था नही है जहां कंप्यूटर का use ना किया जाता हो।

सरकार लोगों का data क्लाउड के अंदर ही save करके रखती है। जिससे कि बाद में उसे आसानी से एक्सेस किया जा सके। जैसे आधार कार्ड की सभी जानकारी हम इंटरनेट के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।

9- Medical Field (स्वास्थ्य के क्षेत्र में)

मेडिकल क्षेत्र में क्लाउड कंप्यूटिंग का उपयोग मरीजों के डेटा को स्टोर करने और एक्सेस करने के लिए किया जाता है।

इसके अलावा यह रोगियों के बिच सूचनाओं को आसानी से डिस्ट्रीब्यूट करने में मदद करती है। क्लाउड कंप्यूटिंग के माध्यम से डॉक्टर इमरजेंसी कॉल , एम्बुलेंस की जानकारी को आसानी से एक्सेस किया जा सकता है।

10- Entertainment (मनोरंजन के क्षेत्र में)

इसका इस्तेमाल मनोरंजन के क्षेत्र में भी किया जाता है। यह तकनीक विभिन्न मनोरंजन ऍप्लिकेशन्स जैसे ऑनलाइन गेम , और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्रदान करती है।

इसके अलावा भी कई एप्लीकेशन हो सकते है जैसे संगीत / वीडियो, और , स्ट्रीमिंग सेवाएं आदि। यह मनोरंजन का एक नया रूप है जिसे हम ऑन-डिमांड एंटरटेनमेंट (ODE) कहते है।

Cloud Computing की services (सेवाएं)

इसकी चार services होती हैं जो कि नीचे दी गयी हैं:-

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1- IaaS

  • इसका पूरा नाम infrastructure as a service है. यह एक ऐसा सर्विस model है जिसमें कस्टमर को क्लाउड वातावरण में हार्डवेयर, नेटवर्किंग तथा स्टोरेज सर्विसेज उपलब्ध करायी जाती है.
  • दुसरे शब्दो में कहे तो Iaas एक ऐसी सेवा है जहां पर नेटवर्किंग डिवाइस , डेटाबेस और वेब सर्वर एंटरप्राइज को एक infrastructure प्रदान करती है।
  • इसे Haas के नाम से भी जाना जाता है। इसमें यूजर को उतने ही पैसे देने पड़ते है जितना वो इसका इस्तेमाल करते हैं।
  • यह सर्विस मॉडल एप्लीकेशन और सर्विसेज को विकसित करने के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम, सुरक्षा, नेटवर्किंग और सर्वर प्रदान करता है।
  • इस मॉडल में, जो सॉफ्टवेर एप्लीकेशन तथा ऑपरेटिंग सिस्टम कस्टमर द्वारा इनस्टॉल किये जाते हैं उन्हें अपडेट करना कस्टमर की जिम्मेदारी होती है.
  • इस मॉडल में यूजर सर्वर को मैनेज किये बिना कंप्यूटिंग पावर और वर्चुअल मशीन का उपयोग कर सकता है। यह मॉडल उन लोगो के लिए एक अच्छा विकल्प है जिनके पास कम पैसा होता है।
  • इसका उदाहरण हैं:- गूगल कंप्यूट इंजन, और  माइक्रोसॉफ्ट अजुरे (azure) आदि.

2- PaaS

  • Paas का पूरा नाम (Platform as a Service) है। यह एक ऐसा सर्विस प्रोवाइडर है जो कि कस्टमर को एक ऐसा प्लेटफार्म देता है जिसमें कि वो आसानी से सॉफ्टवेर एप्लीकेशन को बना सकें, मैनेज कर सकें, तथा डिलीवर कर सकें.
  • इस सर्विस का इस्तेमाल वेब डेवेलपर्स के द्वारा कस्टम एप्लीकेशन बनाने के लिए किया जाता है। इस सर्विस में डेवेलपर्स को कस्टम एप्लीकेशन बनाने के लिए डेटा स्टोरेज , डेटा सर्विंग और मैनेजमेंट की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • PaaS को सामान्यतया middleware भी कहा जाता है क्योंकि यह SaaS तथा IaaS के मध्य का सर्विस मॉडल है.
  • इसका उदाहरण है:-  गूगल एप इंजन, और अमेज़न वेब सर्विसेज आदि.

3- SaaS

  • Saas का पूरा नाम (Software as a Service) होता है। यह एक स्पेशल कंप्यूटिंग सर्विस जिसका इस्तेमाल इंटरनेट पर एप्लीकेशन और सेवाओं को डिस्ट्रीब्यूट करने के लिए किया जाता है।
  • यह एक डिस्ट्रीब्यूशन मॉडल है जो कि इन्टरनेट में सॉफ्टवेर एप्लीकेशन (जैसे:- ब्राउज़र) को एक सर्विस के रूप में ग्राहकों को उपलब्ध करता है.
  • SaaS की सबसे अच्छी बात यह है कि हमें इसमें किसी सॉफ्टवेर एप्लीकेशन को install, maintain, तथा run करने की जरुरत नहीं होती है क्योंकि इसके सारें सॉफ्टवेर एप्लीकेशन वेब ब्राउज़र से सीधे ही run हो जाते है.
  • इसमें IaaS और PaaS दोनों तरह की सेवाएं शामिल होती है।
  • SaaS में कस्टमर का डेटा पूरी तरह सुरक्षित होता है और अगर सिस्टम में कोई खराबी भी आ जाएँ तो भी डेटा सुरक्षित रहता है.
  • SaaS एप्लीकेशन के उदाहरण है:- google apps, और office365 आदि.

4- FaaS

  • Faas का पूरा नाम (Functions as a Service) है। यह एक लोकप्रिय तकनीक है जो डेवेलपर्स को इंटरनेट पर एप्लीकेशन बनाने के लिए एक प्रकार का वातावरण या प्लेटफार्म प्रदान करती है।
  • यह सर्विस यूजर के कोड को विकसित करने , कैलकुलेशन करने और उसे execute करने में मदद करती है। यह सर्विस यूजर को इंफ्रास्ट्रक्चर को मेन्टेन किये बिना ही कोड को डेवेलोप करने और अपडेट करने की परमिशन देती है।
  • Paas और FaaS दोनों में ही कार्य करने की छमता समान होती है लेकिन लागत और scalability के मामले में यह अलग हो सकते है।

इसे पढ़ें:

Exam में पूछे जाने वाले प्रश्न

क्लाउड कंप्यूटिंग क्या है?

क्लाउड कंप्यूटिंग एक तकनीक है जिसके द्वारा data या information को इन्टरनेट की सहायता से स्टोर, मैनेज और retrieve किया जाता है.

क्लाउड कंप्यूटिंग कितने प्रकार के होते है?

इसके चार प्रकार होते है :- पब्लिक , प्राइवेट , हाइब्रिड और कम्युनिटी क्लाउड.

Thursday, 13 March 2025

OSI MODEL

 OSI Model in Hindi: OSI मॉडल की फुल फॉर्म – Open Systems Interconnection Model है। यह एक ऐसी अवधारणा है जो नेटवर्किंग के विभिन्न पहलुओं को समझाने और उनके मानकीकरण के लिए उपयोग में लाई जाती है। वर्ष 1984 में इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन (ISO) द्वारा इसे विकसित किया गया था, जिसका उद्देश्य नेटवर्किंग की जटिलताओं को समझने की दिशा में आगे बढ़ना था। OSI मॉडल सात परतों (layers) में नेटवर्किंग प्रक्रियाओं को विभाजित करता है, जिससे नेटवर्क के विभिन्न घटकों के बीच इंटरऑपरेबिलिटी (interoperability) सुनिश्चित होती है। इस ब्लॉग में आपके लिए OSI मॉडल (OSI Model in Hindi) की विस्तृत जानकारी दी गई है। OSI Model के बारे में जानने के लिए आपको यह ब्लॉग अंत तक जरूर पढ़ना चाहिए

OSI मॉडल का पूरा नाम Open System Interconnection Model हैं। OSI model in Hindi एक रेफेरेंस मॉडल है जिसका उपयोग वास्तविक जीवन में नही होता है, इसका उपयोग  केवल रेफेरेंस मॉडल के रूप में किया जाता है। OSI मॉडल को इंटरनैशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर स्टैंडर्डाइज़ेशन ने  सन् 1984 में विकसित किया था | OSI मॉडल नेटवर्क में डेटा या जानकारी कैसे सेंड और रिसीव होगी इसे विस्तृत करता है। OSI मॉडल, किसी नेटवर्क में दो उपयोगकर्ताओं के बीच कम्युनिकेशन के लिए एक रेफेरेंस मॉडल है।


इस मॉडल में 7 लेयर्स होती है जो एक-दूसरे से जुड़ी नहीं होती है। OSI मॉडल की प्रत्येक लेयर एक- दूसरे पर निर्भर नहीं रहती है लेकिन डेटा का ट्रांसमिशन एक लेयर से दूसरी लेयर में होता है। इस मॉडल की प्रत्येक लेयर का अपना अलग काम होता है जिससे डाटा आसानी से एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम तक पहुंच सके। OSI मॉडल, वर्ल्ड वाइड कंमुनिकेशन नेटवर्क का एक ISO स्टैंडर्ड मॉडल है जो एक नेटवर्किंग फ्रेमवर्क को डिफाइन करता है जिससे की प्रोटोकॉल्स को उसकी 7 लेयर्स में इम्प्लीमेंट किया जा सके । यहाँ एक लेयर सैद्धांतिक रूप से तुलनीय कार्य का एक वर्गीकरण होता है जो नीचे वाली लेयर से सर्विस पाती है और ऊपर वाली लेयर को सर्विस ऑफर करती है। इसमे एक लेयर से दूसरी लेयर तक प्रोसेसिंग कण्ट्रोल एक्ससीड होता है और ये प्रोसेस आखिर लेयर तक चलता है। इसमे प्रोसेसिंग, बॉटम लेयर से स्टार्ट होकर पूरे चैनल से होती हुई आगे के स्टेशन मे जाती है फिर वापस अपनी हायरार्की मे आ जाती हैं। 


इसे OSI क्यों कहा जाता है? 

इस मॉडल को Open System Interconnection (OSI) इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मॉडल किन्हीं दो अलग-अलग सिस्टम को आपस मे कम्यूनिकेट करने के लिए अनुमति देता है फिर चाहे उनका इंटरनल आर्किटेक्चर कैसा भी हो। इसलिए OSI रेफेरेंस मॉडल दो अलग-अलग सिस्टम के बीच ओपन कम्युनिकेशन करती है, इसके लिए उसके इंटरनल हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में कोई भी बदलाव करने की जरूरत नहीं होती है। यह मॉडल, लॉजिकल फंक्शन और सेट ऑफ़ रूल्स को ग्रुप्स में कर देता हैं, जिन्हें प्रोटोकॉल्स कहा जाता है। दो या दो से ज्यादा सिस्टम के बीच कम्युनिकेशन स्थापित और कंडक्ट करने के लिए लॉजिकल फंक्शन और सेट ऑफ़ रूल्स को ग्रुप्स में करना जरूरी होता है। इंटरनेट नेटवर्किंग और इंटर कंप्यूटिंग के लिए  OSI रेफेरेंस मॉडल को अब एक प्राइमरी स्टैण्डर्ड माना जाता है। 


OSI मॉडल की लेयर्स

तो अभी तक आप OSI model in Hindi इस बारे में जान गये होंगे तो अब चलते है OSI मॉडल के लेयर्स की तरफ। OSI मॉडल मे  7 लेयर्स होती है तथा इन सभी लेयर्स का अपना कार्य होता है तथा ये  सभी लेयर्स आपस में इंटरकनेक्टेड नहीं होती केवल एक लेयर से दूसरी लेयर में ट्रांसमिशन होता है। OSI मॉडल की 7 लेयर्स में नेटवर्क या डेटा कंमुनिकेशन को परिभाषित किया जाता है। इन सातों लेयर्स को तीन ग्रुप्स विभाजित किया जाता है – नेटवर्क, ट्रांसपोर्ट और एप्लीकेशन लेयर |


OSI मॉडल की 7 लेयर्स –


1. फिजिकल लेयर

2. डेटा लिंक लेयर

3. नेटवर्क लेयर

4. ट्रांसपोर्ट लेयर

5. सेशन लेयर

6. प्रेजेंटेशन लेयर

7. एप्लीकेशन लेयर

1. फिजिकल लेयर- फिजिकल लेयर, OSI मॉडल की पहली व सबसे लोवेस्ट लेयर होती है, इसको बिट यूनिट लेयर भी कहते हैं। 

यह लेयर फिजिकल व इलेक्ट्रिकल कनेक्शन के लिए जिम्मेदार होती।

इस लेयर में डिजिटल, सिग्नल, इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदल जाता है।

यह लेयर यह भी बताती है कि कनेक्शन वायर्ड होगा या वायरलेस। 

फिजिकल लेयर की मुख्य एबिलिटी अलग-अलग बिट्स को एक नोड से दूसरे नोड में ट्रांसमिट करना है। 

यह फिजिकल कनेक्शन को एस्टब्लिश, मेन्टेन व इनएक्टिव करती है। 

फिजिकल लेयर के कार्य

OSI model in Hindi के लिए फिजिकल लेयर के कार्य नीचे दिए गए हैं-


यह दो या दो से अधिक डिवाइस को फिजिकली साथ कैसे जोड़ सकते हैं उस तरीके को परिभाषित करती हैं। 

यह ट्रांसमिशन मोड को परिभाषित करती है अर्थात चाहे नेटवर्क पर 2 डिवाइस के बीच सिम्प्लेक्स, हाफ डुप्लेक्स, फुल डुप्लेक्स मोड हो। 

यह इनफार्मेशन ट्रांसमिशन के लिए उपयोग किए जाने वाले सिग्नल के प्रकार को निर्धारित करती है। 

यह लेयर सिग्नल को कैरी करती है और फिजिकल मीडियम में इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल और फंक्शनल इंटरफ़ेस को भी परिभाषित करती है। 

यह वास्तव में दो डिवाइस के बीच फिजिकल कनेक्शन के लिए जिम्मेदार होती है। 

यह लेयर डाटा लिंक लेयर द्वारा भेजे गए फ्रेम को रिसीव करती है और उन्हें ऐसे सिग्नल में बदल देती है जो दूसरे ट्रांसमिशन मीडियम के साथ कम्पेटिबल हो। 

2. डाटा लिंक लेयर-  OSI मॉडल में, डाटा लिंक लेयर दूसरी लेयर होती है इसे फ्रेम यूनिट भी कहा जाता है।

 डेटा लिंक लेयर में नेटवर्क लेयर द्वारा भेजे गए पैकेट्स को डिकोड व एनकोड किया जाता है। 

साथ ही यह लेयर यह भी कन्फर्म करती है कि सभी पैकेट्स एरर फ्री हो। 

इस लेयर में निम्न दो प्रोटोकॉल डेटा ट्रांसमिशन के लिए प्रयोग किये जाते हैै- हाई लेवल डेटा लिंक कंट्रोल (HDLC), पॉइंट-टू-पॉइंट प्रोटोकॉल (PPP)

 यह मुख्य रूप से डिवाइस की यूनिक आइडेंटिफिकेशन के लिए जिम्मेदार होती है ।  

इस लेयर की दो सब-लेयर होती है: 

लॉजिकल लिंक कंट्रोल लेयर- यह लेयर पैकेट को रिसीव कर नेटवर्क लेयर पर ट्रांसफर करने के लिए जिम्मेदार होती है यह पैकेट को फ्लो कंट्रोल प्रदान कर दी है। 

मीडिया एक्सेस कंट्रोल लेयर- यह लेयर लॉजिकल लिंक लेयर और नेटवर्क की फिजिकल लेयर के बीच की कड़ी है इसका उपयोग पैकेट को नेटवर्क पर ट्रांसफर करने के लिए किया जाता। 

डाटा लिंक लेयर के कार्य

OSI model in Hindi के लिए डाटा लिंक लेयर के कार्य नीचे दिए गए हैं-


डाटा लिंक लेयर, फिजिकल लेयर की फ्रेम में रॉ बिट स्ट्रीम को जोड़ती है जिसे फ्रेमिंग कहा जाता है। यह फ्रेम में हैडर और ट्रेलर को जोड़ती है जिसमे हार्डवेयर डेस्टिनेशन और सोर्स एड्रेस होता है। 

डाटा लिंक लेयर, एक हैडर को फ्रेम में जोड़ती है जिसमें डेस्टिनेशन का एड्रेस होता है और फिर उस फ्रेम को डेस्टिनेशन एड्रेस पर सेंड किया जाता है। 

डाटा लिंक लेयर का मुख्य कार्य फ्लो कण्ट्रोल और एरर कण्ट्रोल करना है। 

डाटा लिंक लेयर के ट्रेलर में रखी जाने वाली वैल्यू CRC को जोड़कर एरर कंट्रोल को प्राप्त करता है। 

यह लेयर जब दो या दो से अधिक डिवाइस एक ही कम्युनिकेशन चैनल से जुड़े होते हैं तो उनके बीच एक्सेस कंट्रोल को निर्धारित करती है। 

3. नेटवर्क लेयर –  यह OSI मॉडल की तीसरी लेयर होती है। इस लेयर को पैकेट यूनिट भी कहा जाता हैं।


इस लेयर मे स्विचिंग और रूटिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है। 

इस लेयर का कार्य आईपी एड्रेस प्रदान कराना  है। 

नेटवर्क लेयर में जो डाटा होता है वह पैकेट(डेटा के group) के रूप में होता है और इन पैकेट्स को सोर्स से डेस्टिनेशन तक पहुंचाने का काम नेटवर्क लेयर का होता है।  

यह अलग-अलग डिवाइस में लॉजिकल कनेक्शन उपलब्ध कराती है।

इस लेयर का काम राउटिंग का भी है यह डेटा ट्रांसफरिंग के लिए सबसे अच्छे रूट को बताती है। 

नेटवर्क लेयर के मुख्य काम एरर हैंडलिंग, पैकेट सीक्वेंसिंग, इंटरनेटवर्किंग, एड्रेसिंग और कंजेशन कंट्रोल हैं।

नेटवर्क लेयर की तीन सब-लेयर होती हैं-

सब नेटवर्क एक्सेस- यह एक प्रोटोकॉल के रूप में जानी जाती है और यह इंटरफ़ेस का नेटवर्क के साथ डील के लिए जिम्मेदार होता है। 

सब नेटवर्क डिपेंडेंट कन्वर्जेन्स- यह नेटवर्क लेयर के किसी भी साइड तक ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क के लेवल को कैरी करने के लिए जिम्मेदार है। 

सब नेटवर्क इंडिपेंडेंट कन्वर्जेन्स– इसका उपयोग मल्टीपल नेटवर्क नेटवर्क पर ट्रांसपोर्टेशन को मैनेज करने के लिए किया जाता है।

नेटवर्क लेयर के कार्य

OSI model in Hindi के लिए नेटवर्क लेयर के कार्य नीचे दिए गए हैं-


नेटवर्क लेयर की मुख्य जिम्मेदारी विभिन्न डिवाइस के बीच लॉजिकल कनेक्शन प्रोवाइड कराना है। 

नेटवर्क लेयर, फ्रेम के हैडर में सोर्स और डेस्टिनेशन एड्रेस को जोड़ती हैं। 

इंटरनेट पर डिवाइस को पहचानने के लिए एड्रेसिंग का उपयोग किया जाता है। 

राउटिंग, नेटवर्क लेयर का प्रमुख कार्य है और यह सोर्स से डेस्टिनेशन तक के रास्तों में से सबसे अच्छे रास्ते को निर्धारित करता है। 

नेटवर्क लेयर फ्रेम को अपनी अपर लेयर से प्राप्त करती है और उन्हें पैकेट्स में परिवर्तित करती है इस प्रक्रिया को पैकेटीज़िंग कहा जाता है। 

ट्रांसपोर्ट लेयर के रिक्वेस्ट पर,ये बेस्ट क्वालिटी की सर्विस भी प्रदान करती है। इस लेयर में TCP/IP इम्प्लीमेंटेड प्रोटोकॉल हैं। 

यह लॉजिकल एड्रेस या नेम्स को फिजिकल एड्रेस में ट्रांसलेट करती है। 

4. ट्रांसपोर्ट लेयर –  यह OSI मॉडल की चौथी लेयर है, इसे सेगमेंट यूनिट भी कहा जाता है। 


ट्रांसपोर्ट लेयर का मुख्य कार्य डाटा को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर तक बिना एरर और क्रम में ट्रांसमिट करना है। 

 इस लेयर का कार्य दो कंप्यूटरों के मध्य कम्युनिकेशन को उपलब्ध कराना भी है। 

ट्रांसपोर्ट लेयर 2 तरह से कम्यूनिकेट करती हैं- कनेक्शन लेस और कनेक्शन ओरिएंटेड।

इस लेयर को एन्ड टू एन्ड लेयर के रूप मे जाना जाता है क्योंकि यह डाटा डिलीवरी के लिए सोर्स व डेस्टिनेशन के बीच पॉइंट टू पॉइंट कनेक्शन प्रोवाइड करती है। 

इस लेयर के मुख्य दो प्रोटोकॉल्स है-

ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल (TCP)- यह एक स्टैण्डर्ड प्रोटोकॉल है जो सिस्टम को इंटरनेट पर कम्यूनिकेट करने की अनुमति देता है। जब डेटा को TCP प्रोटोकॉल पर भेज जाता है तो यह डेटा को सेगमेंट में विभाजित करता है। ये सेगमेंट विभिन्न मार्ग द्वारा अपने डेस्टिनेशन पर पहुँचते हैं जहाँ इन्हे व्यवस्थित कर क्रम में लाया जाता है। 

यूजर डाटाग्राम प्रोटोकॉल(UDP)- यह एक ट्रांसपोर्ट लेयर प्रोटोकॉल है जो अविश्वसनीय है, क्योंकि इसमें पैकेट के रिसीव होने पर, रिसीवर किसी भी तरह का स्वीकृति सेंड नहीं करता। 

ट्रांसपोर्ट लेयर के कार्य

ट्रांसपोर्ट लेयर की जिम्मेदारी मैसेज को सही प्रोसेस में ट्रांसमिट करना, जबकि नेटवर्क लेयर की जिम्मेदारी डेटा को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में ट्रांसफर करना हैं। 

जब ट्रांसपोर्ट लेयर को ऊपरी लेयर से मैसेज मिलता है तो वह इसे कई सारे सेगमेंट मे डिवाइड कर देती है और प्रत्येक सेगमेंट को एक क्रम नंबर दिया जाता है जिससे उनकी पहचान होती है। जब मैसेज डेस्टिनेशन पर आता है तो ट्रांसपोर्ट लेयर मैसेज को उसके क्रम नंबर के आधार पर पुनर्व्यवस्थित करती हैं। 

एक कनेक्शन लेस सर्विस प्रत्येक सेगमेंट को एक पर्सनल पैकेट के रूप में माना जाता  है और वे सभी  विभिन्न मार्गो से होते हुए डेस्टिनेशन तक जाते  हैं।

जबकि एक कनेक्शन ओरिएंटेड सर्विस, पैकेट देने से पहले डेस्टिनेशन मशीन पर ट्रांसपोर्ट लेयर के साथ एक कनेक्शन बनाती है इसमें सभी पैकेट एक सिंगल रूट से होते हुए डेस्टिनेशन तक पहुँचते है।

ट्रांसपोर्ट लेयर फ्लो कण्ट्रोल व एरर कण्ट्रोल के लिए जिम्मेदार है। एरर कण्ट्रोल सिंगल लिंक के बजाए एन्ड टु एन्ड परफॉर्म किया जाता है। ट्रांसपोर्ट लेयर मैसेज सुनिश्चित करती है कि सभी मैसेज बिना किसी एरर के डेस्टिनेशन तक पहुंचे। 

5. सेशन लेयर- यह OSI मॉडल की पांचवी लेयर है।  इसका कार्य यह देखना होता है की कनेक्शन को किस तरह से स्थापित, मेन्टेन तथा टर्मिनेट किया जाता है अर्थात सेशन लेयर दो डिवाइस के बीच कम्युनिकेशन के लिए सेशन उपलब्ध करवाती है। 


सेशन लेयर के कार्य

सेशन लेयर डायलॉग कंट्रोलर की तरह काम करती हैं जो हाफ-डुप्लेक्स या फुल-डुप्लेक्स हो सकता है।

यह दो प्रोसेस के बीच डायलॉग को क्रिएट करता हैं।

यह सिंक्रनाइज़ेशन के कार्य को भी पुरा करती हैं अर्थात् जब भी किसी ट्रांसमिशन में एरर आती हैं तो उस ट्रांसमिशन को दोबारा किया जाता हैं। 

यह डिवाइस के बीच क्रम संचार प्रदान करती है इसके लिए डाटा के फ्लो को रेगुलेट करना होता है। 

डाटा का फॉर्मेट जिसे कनेक्शंस में सेंड किया जाना है उसे सेशन प्रोटोकॉल डिफाइन करता है। 

सेशन लेयर किन्ही दो यूजर के बीच सेशन को नेटवर्क के दो अलग-अलग एंड्स पर मैनेज व एस्टब्लिश करता है। 

किसी भी क्रम में डाटा ट्रांसमिट करते समय सेशन लेयर कुछ चेकपॉइंट ऐड करती है यदि डाटा ट्रांसमिशन में कोई एरर आती है तो डेटा का इन्ही चेकपॉइंट से फिर ट्रांसमिशन किया जाता है इस प्रोसेस को सिंक्रोनाइजेशन और रिकवरी के रूप में जाना जाता है। 

6. प्रेजेंटेशन लेयर–  यह OSI मॉडल की छठी लेयर है,इसे ट्रांसलेशन लेयर भी कहा जाता है। प्रेजेंटेशन लेयर दो अलग अलग प्रकार के सिस्टम के बीच डेटा के विभिन्न फॉर्मेट को एक यूनिफार्म फॉर्मेट में प्रेजेंट करता है। 


यह लेयर ऑपरेटिंग सिस्टम से संबंधित हैं।

इसका उपयोग डाटा को एन्क्रिप्ट व डिक्रिप्ट करने मे किया जाता है। 

इसे डेटा कम्प्रेशन के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।

प्रेजेंटेशन लेयर मुख्य रूप से दो सिस्टम के बीच ट्रांसफर की गई जानकारी के सिंटेक्स और सेमेंटिक्स से संबंधित हैं। 

प्रेजेंटेशन लेयर के कार्य

इस लेयर का कार्य एन्क्रिप्शन व डेक्रिप्शन का होता है।

डेटा की प्राइवेसी के लिए इसका उपयोग किया जाता है। 

इस लेयर का मुख्य कार्य कम्प्रेशन का भी  होता है।

कम्प्रेशन बहुत जरुरी होता है क्योंकि हम कम्प्रेशन द्वारा डाटा को कम्प्रेस करके उसके साइज को कम कर सकते है।

यह लेयर, एप्लीकेशन लेयर में प्रेजेंट किये जाने वाले डाटा को फॉर्मेट करता है इसे आप एक नेटवर्क का ट्रांसलेटर भी समझ सकते हैं। 

7. एप्लीकेशन लेयर-  एप्लीकेशन लेयर ,OSI मॉडल की सातवीं और सबसे उच्चतम लेयर है।


 एप्लीकेशन लेयर का मुख्य काम हमारी वास्तविक(Real) एप्लीकेशन तथा अन्य लेयर्स के बीच इंटरफ़ेस प्रोवाइड कराना है।

एप्लीकेशन लेयर एन्ड यूजर के सबसे नजदीक होती है। इस लेयर के अंतर्गत HTTP, FTP, SMTP तथा NFS आदि प्रोटोकॉल आते है।

यह लेयर,कोई भी एप्लीकेशन किस प्रकार नेटवर्क से एक्सेस करती है और इसे कण्ट्रोल करती है। 

एप्लीकेशन लेयर के कार्य

एक एप्लीकेशन लेयर एक यूजर को रिमोट कंप्यूटर पर फाइल अपलोड करने, रेट्रिएव करने और एक्सेस करने की अनुमति देता है। 

एप्लीकेशन लेयर, ईमेल फॉरवर्डिंग व स्टोरेज के लिए फैसिलिटी उपलब्ध करवाती हैं। 

यह डायरेक्टरी सर्विस प्रोवाइड कराती हैं। 

इसका उपयोग डाटा की ग्लोबल इंफॉर्मेशन को प्रदान करने में किया जाता है। 

OSI मॉडल के फीचर्स

अभी तक आपने देखा कि OSI Model in Hindi में कितनी लेयर्स होती हैं? तो अब चलते हैं इसके फीचर्स की तरफ-


यह मॉडल दो लेयर्स में विभाजित होता है-एक अपर लेयर और दूसरा लोवर लेयर।  

इसकी अपर लेयर मुख्यतया एप्लीकेशन से सम्बन्धित इश्यूज को हैंडल करती है और ये केवल सॉफ्टवेयर पर लागू होती हैं।

एप्लीकेशन लेयर, एन्ड यूजर के सबसे नजदीक होती है। 

OSI मॉडल की लोवर लेयर जो है वह डाटा ट्रांसपोर्ट के इशू को हैंडल करती है। 

डाटा लिंक लेयर और फिजिकल लेयर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में लागू होती है ।

फिजिकल लेयर सबसे निम्नतम लेयर होती है और यह फिजिकल मीडियम के सबसे नजदीक होती है।

फिजिकल लेयर का मुख्य कार्य फिजिकल मीडियम में डाटा या इनफार्मेशन को रखना होता है। 

OSI मॉडल के फायदे

अभी तक हमने देखा कि OSI model in Hindi, इसकी कितनी लेयर होती है और प्रत्येक लेयर का क्या कार्य होता है अब हम  जानेंगे कि OS मॉडल के फायदे क्या होते हैं-


यह एक जेनेरिक मॉडल है तथा इसे स्टैण्डर्ड मॉडल के रूप मे भी माना जाता है। 

OSI मॉडल की लेयर्स सर्विस, इंटरफ़ेस तथा प्रोटोकॉल के लिए बहुत स्पेशल होती है। 

यह मॉडल बहुत ही फ्लेक्सिबल होता है क्योंकि इसमें किसी भी प्रोटोकॉल को इम्प्लीमेंट किया जा सकता है। 

OSI मॉडल कनेक्शन-ओरिएंटेड तथा कनेक्शनलेस दोनों प्रकार की सर्विस को सपोर्ट करता है। 

 OSI मॉडल की प्रत्येक लेयर आपस मे इंटरकनेक्टेड नही होती। इसमें अगर एक लेयर मे चेंज कर दिया जाए तो भी दूसरी लेयर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

यह मॉडल बहुत ही ज्यादा सिक्योर और अनुकूलनीय होता है।

ओ एस आई मॉडल लोगों को  नेटवर्क के बारे में समझाने के लिए बहुत अच्छा तरीका है। 

यह वर्ल्ड वाइड कम्युनिकेशन का एक, ISO स्टैण्डर्ड होता हैं जो नेटवर्किंग फ्रेमवर्क को दर्शाता है। 

यह अंतरराष्ट्रीय मानक संगठन (ISO) का एक एफर्ट हैं जिसमें ओपन नेटवर्क को प्रोत्साहित किया जाता हैं और साथ ही में एक ओपन सिस्टम इंटरकनेक्ट रेफरेंस मॉडल भी बनाया जाता है। 

OSI मॉडल के नुकसान

OSI model in Hindi के नुकसान निम्नलिखित हैं-


इसमें कभी-कभी नये प्रोटोकॉल को लागू करना कठिन होता हैं क्योंकि यह मॉडल इन प्रोटोकॉल्स के बनने से पहले ही बन गया था। 

यह मॉडल किसी विशेष प्रोटोकॉल को परिभाषित नहीं करता है। 

इस मॉडल के सभी लेयर्स एक- दूसरे पर इंटरडिपेंडनेट होती है। 

इस मॉडल की ट्रांसपोर्ट-लेयर और सत्ता लिंक लेयर दोनों एरर कण्ट्रोल करती है जिसकी वजह से इसमें सर्विस का डुप्लीकेशन हो जाता है। 

OSI की फुल फॉर्म क्या है?

OSI की फुल फॉर्म Open System Interconnection Model है।


OSI मॉडल की दूसरी परत के लिए संचार उपकरण कौन सा है?

OSI मॉडल की दूसरी परत के लिए संचार उपकरण डेटा लिंक परत है।


OSI मॉडल को OSI क्यों कहां जाता है?

इस मॉडल को Open System Interconnection (OSI) इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मॉडल किन्हीं दो अलग-अलग सिस्टम को आपस मे कम्यूनिकेट करने के लिए अनुमति देता है फिर चाहे उनका इंटरनल आर्किटेक्चर कैसा भी हो।


OSI मॉडल की 7 परतें क्या हैं?

OSI मॉडल में कुल 7 परतें होती हैं, जिनके नाम क्रमशः भौतिक परत (Physical Layer), डेटा लिंक परत (Data Link Layer), नेटवर्क परत (Network Layer), ट्रांसपोर्ट परत (Transport Layer), सत्र परत (Session Layer), स्तुति परत (Presentation Layer), एप्लिकेशन परत (Application Layer) है।


OSI मॉडल का महत्व क्या है?

OSI मॉडल नेटवर्किंग प्रक्रियाओं को समझने और विश्लेषण करने के लिए एक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह नेटवर्किंग प्रोटोकॉल के मानकीकरण में मदद करता है और नेटवर्क के विभिन्न घटकों के बीच संचार को सरल बनाता है।


OSI मॉडल और TCP/IP मॉडल में क्या अंतर है?

OSI मॉडल और TCP/IP मॉडल दोनों नेटवर्किंग के मानक हैं, जहाँ OSI मॉडल में 7 परतें होती हैं, जबकि TCP/IP मॉडल में 4 परतें होती हैं। वहीं दूसरी ओर OSI मॉडल एक थ्योरिटिकल मॉडल है, जबकि TCP/IP मॉडल व्यावहारिक है और इंटरनेट पर आधारित है।


OSI मॉडल का प्रयोग कहां किया जाता है?

OSI मॉडल का प्रयोग नेटवर्क डिजाइन, नेटवर्क प्रोटोकॉल के विकास, और नेटवर्किंग समस्याओं के समाधान में किया जाता है। यह नेटवर्क इंजीनियरों और IT पेशेवरों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।


OSI मॉडल के प्रत्येक स्तर में कौन से प्रोटोकॉल काम करते हैं?

OSI मॉडल के प्रत्येक स्तर में विभिन्न प्रोटोकॉल कार्य करते हैं:


भौतिक परत: Ethernet, USB, Bluetooth

डेटा लिंक परत: Ethernet, PPP, Frame Relay

नेटवर्क परत: IP, ICMP, ARP

ट्रांसपोर्ट परत: TCP, UDP

सत्र परत: NetBIOS, RPC

प्रस्तुति परत: SSL, TLS, JPEG

एप्लिकेशन परत: HTTP, FTP, SMTP, DNS


OSI मॉडल का उपयोग क्यों किया जाता है?

OSI मॉडल का उपयोग नेटवर्किंग प्रणालियों के डिजाइन, विकास और समस्याओं को हल करने के लिए किया जाता है। यह नेटवर्किंग के प्रत्येक स्तर के कार्य को स्पष्ट करता है और नेटवर्क इंजीनियरों को डेटा ट्रांसमिशन को बेहतर बनाने में मदद करता है।


OSI मॉडल का अध्ययन UPSC के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

UPSC परीक्षा में, विशेष रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अंतर्गत, OSI मॉडल का अध्ययन नेटवर्किंग और संचार प्रौद्योगिकियों के बारे में समझ प्रदान करता है। यह विषय सामान्य अध्ययन (GS) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रश्नों में उपयोगी हो सकता हैं

Wednesday, 5 February 2025

GITI BBANIKODAR BARABANKI

Government industrial Training Institute Banikodar Barabanki (463) 

INTERNET (इंटरनेट)


What is Internet – इंटरनेट क्या है?
इंटरनेट दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क है जो पूरी दुनिया में फैला रहता है. इंटरनेट को हिंदी में ‘अंतरजाल’ कहते हैं.

दूसरे शब्दों में कहें तो, “इंटरनेट एक वैश्विक (global) नेटवर्क है जिसमें बहुत सारें कंप्यूटर आपस में एक दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं.”

इंटरनेट बहुत सारें छोटे नेटवर्कों का एक समूह होता है इसलिए इंटरनेट को ‘नेटवर्कों का नेटवर्क’ भी कहा जाता है.

इंटरनेट एक वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) है जिसमें डाटा को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) का इस्तेमाल किया जाता है.

Internet का पूरा नाम ‘Interconnected Network (इंटरकनेक्टेड नेटवर्क)’ होता है.

आप दुनिया में किसी भी कोने पर पर मौजूद हो, आप इंटरनेट का इस्तेमाल करके कोई भी जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं.

इंटरनेट ‘क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर’ पर कार्य करता है. वह व्यक्ति जो इंटरनेट पर मौजूद information (सूचना) का प्रयोग करता है उसे क्लाइंट कहा जाता है और वह कंप्यूटर जिसमें यह सूचना स्टोर रहती है उसे सर्वर कहा जाता है.

इंटरनेट का अविष्कार 1 जनवरी 1983 को Vint Cerf और Bob Kahn ने किया था. इसलिए Vint Cerf और Bob Kahn को ‘इंटरनेट का पिता’ भी कहा जाता है.

इंटरनेट का कोई भी मालिक नहीं है क्योंकि किसी एक व्यक्ति, देश, या कंपनी का इंटरनेट पर अधिकार नहीं होता.

भारत में पहली बार 14 अगस्त 1995 को इंटरनेट लांच हुआ था. तब उस समय इसकी स्पीड बहुत कम हुआ करती थी.

इंटरनेट एक ऐसा नेटवर्क है जो दुनिया भर के डिवाइसों और कंप्यूटरों को www (वर्ल्ड वाइड वेब) के साथ जोड़ता है।

इंटरनेट एक ऐसी सुविधा है जिसका इस्तेमाल दुनिया भर के लोगो के साथ संचार (communication) करने के लिए किया जाता है। इंटरनेट का इस्तेमाल डेटा को ट्रांसफर करने , वीडियो कालिंग करने , मनोरजन करने के लिए भी किया जाता है।

आज के समय में इंटरनेट सूचनाओं को एक स्थान से दुसरे स्थान में भेजने के लिए सबसे तेज और अच्छा साधन है। आज के समय में इंटरनेट लोगो के जीवन का एक अहम हिस्सा बन चूका है क्योकि बिना इंटरनेट के लोग एक पल भी नहीं बिता सकते। आज इंटरनेट ने हर एक चीज़ को ऑनलाइन कर दिया है जैसे की :- मनी ट्रांसफर, ऑनलाइन टिकट बुकिंग, ऑनलाइन परीक्षा, ऑनलाइन पढाई आदि।

internet in Hindi
इंटरनेट के लाभ-

इसके बहुत सारें लाभ होते है जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है :-

1- इंटरनेट का उपयोग करके यूजर किसी भी इंसान को मेसेज भेज और प्राप्त कर सकता है। यह आपको तेज गति से मेसेज भेजने और प्राप्त करने की अनुमति प्रदान करता है।

2- इसकी मदद से यूजर अपने बिलो का भुगतान कर सकता है। उदहारण के लिए बिजली बिल, गैस बिल, कॉलेज फीस आदि।



3- यह लोगो को घर बैठे काम करने की सुविधा देता है। आज के समय में लाखो लोग इंटरनेट का उपयोग करके घर बैठे अपना ऑफिस का काम करते है।

4- इंटरनेट के माध्यम से यूजर अपने कंप्यूटर को विभिन्न प्रकार की क्लाउड सेवाओं के साथ कनेक्ट कर सकता है जैसे की :- क्लाउड स्टोरेज, क्लाउड कंप्यूटिंग आदि।

5- आज के समय में इंटरनेट का उपयोग advertisment (प्रचार) करने के लिए भी किया जाता है। बहुत सी ऐसी कम्पनिया है जो इंटरनेट के माध्यम से अपने प्रोडक्ट और सेवाओं का प्रचार करती है।

6- यह यूजर को विभिन्न प्रकार के जॉब पोर्टल्स पर ऑनलाइन नौकरियों को खोजने में मदद करता है।


7- इंटरनेट के माध्यम से ग्राहक इंटरनेट बैंकिंग का उपयोग कर सकते है। इंटरनेट बैंकिंग के द्वारा आप घर बैठे बैंक से संबंधित सारे काम कर सकते है जैसे की :- पैसे भेजना , शेष राशि की जांच करना आदि।

8- इंटरनेट का प्रयोग करके हम अपने प्रोडक्ट्स और सेवाओं को ऑनलाइन पूरी दुनिया में बेच सकते है। 

9:– इसका इस्तेमाल करके हम घर बैठे पैसा कमा सकते हैं.

10:– इसका इस्तेमाल करके हम दुनिया भर की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

इसे पढ़ें:- नेटवर्क क्या है और इसके प्रकार

इंटरनेट के नुकसान

इसके नुकसान नीचे दिए गये हैं :-                                         

1- इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करने से इसकी लत लग जाती है। यदि हम अपने फोन या कंप्यूटर में इंटरनेट का उपयोग अधिक मात्रा में करते है तो हमे इसकी लत (addiction) लग जाती है जिसकी वजह से हम अपना किमती समय बर्बाद करने लगते है।

2- इंटरनेट पर साइबर क्राइम का खतरा हमेशा बना रहता है। साइबर क्राइम एक प्रकार का अपराध होता है जिसमे कोई अनजान व्यक्ति हमारे डेटा की चोरी करता है और उस डेटा का गलत इस्तेमाल करता है।

3- यदि आप बहुत अधिक मात्रा में इंटरनेट का उपयोग करते है तो आपको शरीर से संबंधित समस्याओ का सामना करना पड़ सकता है। जैसे की :- आपकी आँखों की रौशनी कमजोर हो सकती है , आपके सिर में दर्द हो सकता है , आपकी रीढ़ की हड्डी में दर्द हो सकता है आदि।

4- बच्चो पर इंटरनेट का सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है क्योकि आज के समय में ज्यादातर बच्चे  इंटरनेट पर दिन रात गेम खेलते रहते है। बच्चो को इंटरनेट की लत जल्दी लग जाती है। इसलिए यह छोटे बच्चो के लिए ज्यादा हानिकारक है।

5- आज के समय में लोग इंटरनेट का इस्तेमाल गलत चीज़ो को देखने के लिए करते है। उदहारण के लिए अश्लील तस्वीरें और अश्लील वीडियो आदि। आधुनिक समय में लाखो करोड़ो लोग ऐसे है जो इंटरनेट का उपयोग केवल अश्लील चीज़ो को देखने के लिए करते है।

6– जब हम इंटरनेट के माध्यम से किसी अंजान वेबसाइट पर विजिट कर रहे होते है तब हमारे कंप्यूटर या डिवाइस में वायरस आने का खतरा बना रहता है। वायरस हमारे कंप्यूटर या डिवाइस में प्रवेश करके हमारे डेटा को नुकसान पंहुचा सकता है और उस डेटा को डिलीट भी कर सकता है। इसके अलावा वायरस आपके कंप्यूटर में प्रवेश करके आपकी जरुरी जानकारी को चुरा भी सकता है और उस जानकारी का गलत उपयोग भी कर सकता है।

7– इंटरनेट पर बहुत से ऐसे लोग मौजूद है जो दुसरे लोगो के साथ धोखाधड़ी करते है। आधुनिक समय में इंटरनेट पर लाखो fraud होते है . धोखाधड़ी में पैसो की चोरी , डेटा की चोरी , ब्लैक मेल करना आदि शामिल है।

इंटरनेट के उपयोग-

Internet का उपयोग बहुत सारें कार्यों को करने के लिए किया जाता है:-

1– Entertainment (मनोरंजन) के लिए

दुनिया में इंटरनेट का उपयोग ज्यादातर मनोरंजन के लिए किया जाता है। लोग इंटरनेट की मदद से ऑनलाइन गाने सुनते है, विडियो देखते है, गेम खेलते है.

इंटरनेट की दुनिया में मनोरंजन से सबंधित बहुत सारीं सामाग्री उपलब्ध है जिन्हे लोग देखना और सुनना पसंद करते है। लोग ज्यादातर YouTube का इस्तेमाल विडियो देखने और गाने सुनने के लिए करते हैं.

2– Online Shopping (ऑनलाइन शॉपिंग) के लिए

इंटरनेट का इस्तेमाल ऑनलाइन समान खरीदने के लिए भी किया जाता है। आधुनिक समय में ऑनलाइन समान खरीदना और बेचना काफी लोकप्रिय हो चूका है। आज लोग घर बैठे इंटरनेट की मदद से ऑनलाइन शॉपिंग कर सकते है। उदहारण के लिए आप इंटरनेट की मदद से Amazon या Flipkart से शॉपिंग करते है।

3– Online Education (ऑनलाइन शिक्षा) के लिए

इंटरनेट ने शिक्षा को आगे बढ़ाने का काम किया है। आज के समय में छात्र इंटरनेट के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर सकते है , ऑनलाइन क्लास ले सकते है और ऑनलाइन परीक्षा भी दे सकते है।

इंटरनेट की मदद से छात्र  विभिन्न प्रकार के शिक्षा से संबंधित कार्यो को कर सकते है जैसे कि :- किसी विषय पर जानकारी को खोजना,  प्रोजेक्ट बना सकते है, ऑनलाइन एग्जाम की तैयारी कर सकते है , ऑनलाइन क्लासेस ले सकते है आदि।

इंटरनेट पर सभी प्रकार की पुस्तके (books) उपलब्ध होती है जिन्हे छात्र आसानी से डाउनलोड करके पढ़ सकते है।

4– Data Transfer  (डाटा ट्रान्सफर) करने के लिए

यह इंटरनेट का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग है। आधुनिक समय में इंटरनेट का उपयोग डेटा और सूचनाओं को एक स्थान से दुसरे स्थान में ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है। इंटरनेट का उपयोग करके हम डेटा और फाइलों को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में ट्रांसफर कर सकते है।

इंटरनेट पूरी दुनिया में मौजूद है जिसकी वजह से हम अपने डेटा को दुनिया के किसी कोने में ट्रान्सफर कर सकते है।

5– Research (रिसर्च) के लिए

Internet चीज़ो की रिसर्च करने में भी मदद करता है। आज के समय में हम इंटरनेट की मदद से किसी भी चीज़ के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है।

इंटरनेट पर हर एक चीज़ की जानकारी मौजूद है जिसे हम आसानी से इकट्ठा कर सकते है। उदहारण के लिए आप ehindistudy.com में इंटरनेट के बारे में पढ़ रहे है, यह भी केवल इंटरनेट के कारण ही सम्भव हो पाया है।

6– Online Banking (ऑनलाइन बैंकिंग) के लिए

आज के समय में इंटरनेट का इस्तेमाल घर बैठे किसी भी व्यक्ति को पैसे भेजने के लिए किया जाता है।

मार्किट में बहुत से ऐसे एप्लीकेशन मौजूद है जिनका उपयोग करके कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन पैसे भेज सकता है उदहारण के लिए phone pay, paytm और Google pay आदि।

इसके अलावा इंटरनेट पर मोबाइल बैंकिंग, इंटरनेट बैंकिंग जैसी सुविधाएं मौजूद है जिनका उपयोग करके यूजर ऑनलाइन पैसे भेज सकता है।

7– Social Networking (सोशल नेटवर्किंग)

इंटरनेट का उपयोग सोशल नेटवर्किंग के लिए किया जाता है। सोशल नेटवर्किं एक ऐसी सुविधा है जिसके माध्यम से दुनिया भर के लोग आपस में जुड़ते है।

सोशल नेटवर्किंग में विभिन्न प्रकार की वेबसाइट शामिल है जैसे की :- Facebook, Instagram, और Twitter आदि। सोशल नेटवर्किंग में सुचना से लेकर मनोरंजन तक सबकुछ शामिल होता है।

8– Navigation (नेविगेशन) के लिए

इंटरनेट का इस्तेमाल जगह का पता लगाने के लिए किया जाता है। आप अपनी रोजाना जिंदगी में गूगल मैप का उपयोग जरूर करते होंगे जिसकी मदद से आप रास्तो और जगहों का पता लगाते होंगे। यह सुविधा उन लोगो के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है जो किसी अनजान जगह पर जा रहे है , या कई रास्ता भटक गए हो।

9- ऑनलाइन पैसा कमाने के लिए

इन्टरनेट का इस्तेमाल घर बैठे ऑनलाइन पैसा कमाने के लिए किया जाता है. आप youtube पर विडियो बनाकर, ब्लॉग लिखकर, और instagram में रील बनाकर पैसे कमा सकते हैं.

10- नौकरी खोजने के लिए

हम internet का इस्तेमाल नौकरी खोजने के लिए कर सकते हैं. आजकल बहुत सारीं वेबसाइट और apps मौजूद हैं जिनका उपयोग करके आप आसानी से नौकरी ढूंड सकते है.

इंटरनेट के प्रकार – Types of Internet in Hindi

Internet के बहुत सारें प्रकार होते हैं जिनके बारें में नीचे दिया गया है:-

types of internet in Hindi

1- Dial-Up (डायल अप)

Dial-Up इंटरनेट को एक्सेस करने की सबसे पुरानी तकनीक है. डायल-अप कनेक्शन में इंटरनेट एक्सेस करने के लिए कंप्यूटर को टेलीफ़ोन लाइन के साथ जोड़ा जाता है। Dial Up की इंटरनेट स्पीड काफी धीमी है जिसकी वजह से इसका इस्तेमाल आज के समय में बहुत कम किया जाता है. 

2- Broadband (ब्रॉडबैंड)

यह इंटरनेट से जुड़ने का एक लोकप्रिय तरीका है जिसमे केबल की मदद से इंटरनेट को एक्सेस किया जाता है। ब्रॉडबैंड यूजर को हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा प्रदान करता है जिसकी वजह से यूजर डेटा और फाइलों को तेज गति से ट्रांसफर कर सकता है। इसकी स्पीड 100 mbps तक होती है.

3- Wi-Fi (वाई-फाई)

WI-FI का पूरा नाम Wireless Fidelity (वायरलेस फिडेलिटी) होता है. Wi-Fi में इंटरनेट के साथ जुड़ने के लिए किसी भी प्रकार की केबल का उपयोग नहीं किया जाता है।

Wi-Fi की अधिकतम रेंज 100 मीटर होती है. इसलिए हमें इंटरनेट का इस्तेमाल करने के लिए 100 मीटर के अंदर ही रहना होता है. यदि हम 100 मीटर से बाहर चले जाते हैं तो हम Wi-Fi का इस्तेमाल नहीं कर पायेंगे.

4- Satellite (सेटेलाइट)

Satellite का इस्तेमाल उन जगहों पर इंटरनेट की सुविधा देने के लिए किया जाता है जहां ब्रॉडबैंड की सुविधा मौजूद नहीं होती। यह एक वायरलेस कनेक्शन है जिसमे इंटरनेट से जुड़ने के लिए केबल का उपयोग नहीं करना पड़ता. इसकी स्पीड बहुत ही कम होती है.

5- ISDN

ISDN का पूरा नाम Integrated Service Digital Network (इंटीग्रेटेड सर्विस डिजिटल नेटवर्क) होता है. यह एक टेलीफोन नेटवर्क है जो ग्राहकों को इंटरनेट के साथ वॉयस कॉल और डेटा ट्रांसफर जैसी सुविधाएं भी प्रदान करता है।

6- Leased Line (लीज्ड लाइन)

Leased Line एक टेलीफोन लाइन होती है जिसका इस्तेमाल इंटरनेट को एक्सेस करने के लिए किया जाता है. लीज्ड लाइन का इस्तेमाल सिर्फ बहुत बड़ी कंपनीयों के द्वारा ही किया जाता है. इसकी स्पीड 1 Mbps से 10 Gbps तक होती है.

Internet Connection Protocols in Hindi – इंटरनेट कनेक्शन के प्रोटोकॉल

Internet में इस्तेमाल होने वाले प्रोटोकॉल निम्नलिखित हैं:-

1- TCP/IP

TCP/IP इंटरनेट कनेक्शन का सबसे महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल है. इसमें TCP का पूरा नाम (ट्रांसमिशन कण्ट्रोल प्रोटोकॉल) होता है जो नेटवर्क को आपस में जोड़ता है। IP का पूरा नाम (इन्टरनेट प्रोटोकॉल) होता है जिसका इस्तेमाल डेटा को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है।

इसे पूरा पढ़ें:- TCP/IP मॉडल क्या है?

2- FTP

FTP का पूरा नाम (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) होता है। यह एक ऐसा प्रोटोकॉल है जिसकी मदद से यूजर एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में दस्तावेज़, टेक्स्ट फाइल, मल्टीमीडिया फाइल, प्रोग्राम फाइल आदि को ट्रांसफर करता है।

इसे पूरा पढ़ें:- FTP क्या है?

3- HTTP

HTTP का पूरा नाम (हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल) होता है। इस प्रोटोकॉल का इस्तेमाल इंटरनेट पर सुरक्षित तरीके से ब्राउज़िंग करने के लिए किया जाता है। HTTP का ज्यादातर उपयोग बैंकिंग के क्षेत्र में किया जाता है। 

Internet, Intranet और Extranet के बीच अंतर

InternetIntranetExtranet
इंटरनेट एक public नेटवर्क होता है.इंट्रानेट एक private नेटवर्क होता है.एक्सट्रानेट भी एक private नेटवर्क होता है.
इंटरनेट को प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है।इसका इस्तेमाल केवल एक कंपनी के लोगों के द्वारा ही किया जा सकता है.इसका इस्तेमाल एक से अधिक कंपनी के लोगों के द्वारा किया जाता है.
इसका प्रयोग करने के लिए यूजरनेम और पासवर्ड की जरुरत नहीं होती।Intranet को एक्सेस करने के लिए Username और  Password जरुरी है।इसे भी Access करने के लिए Username और Password जरुरी है।
इसकी सुरक्षा यूज़र के डिवाइस पर निर्भर करती है।इसकी सुरक्षा Firewall पर निर्भर करती है।इसकी सुरक्षा इन्टरनेट और एक्सट्रानेट के फ़ायरवॉल पर निर्भर करती है.
इसके द्वारा दुनिया के सभी computers को connect किया जा सकता है.इसके द्वारा केवल एक कंपनी के Computes को connect किया जाता है.इसके द्वारा एक से ज्यादा कंपनी के computers को connect किया जाता है.
उदाहरण के लिए: इसको आम लोग जैसे की हमलोग इस्तेमाल करते हैं.उदाहरण के लिए- इसको कोई एक कंपनी इस्तेमाल करती है जैसे कि- गूगल कंपनी.उदाहरण के लिए – इसको दो या दो से अधिक कंपनी इस्तेमाल करते हैं जैसे कि- फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट कंपनी.

Exam में पूछे जाने वाले प्रश्न –

इंटरनेट क्या है?

इंटरनेट कंप्यूटरों का एक वैश्विक नेटवर्क है। इंटरनेट में बहुत से स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क होते हैं। यह कंप्यूटरों का ऐसा अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है, जो लाखों उद्यमों, सरकारी एजेंसियों, शैक्षिक संस्थानों और व्यक्तियों आदि को परस्पर जोड़ता है। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि इंटरनेट ने हमारे जीवन जीने के तरीके में एक क्रांति पैदा कर दी है। इसने संचार, व्यवसाय और सूचना प्राप्त करने के साथ-साथ हमारे मनोरंजन के तरीकों को भी बदलकर रख दिया है।

इंटरनेट को हिंदी में क्या कहा जाता है?

Internet को हिंदी में अंतरजाल कहते है. अंतरजाल एक वैश्विक कम्प्यूटर संजाल है जो विभिन्न प्रकार की सूचना और संचार सुविधाएँ प्रदान करता है, जिसमें मानकीकृत संचार प्रोटोकॉलों का उपयोग करके परस्पर जुड़े जाल-तन्त्र शामिल हैं।

इंटरनेट की विशेषता क्या है?

INTERNET की पहली विशेषता यह है कि इंटरनेट के माध्यम से आज एक व्यक्ति किसी भी स्थान से किसी अन्य व्यक्ति से जुड़ सकता है वो अपनी बात या सन्देश प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप में कर सकता है या पहुंचा सकता है.

इंटरनेट का जनक कौन है?

विंट सेर्फ़ और बॉब काहं को इंटरनेट का जनक माना जाता है। यह दोनों इंटरनेट और टीसीपी/आईपी प्रोटोकॉल के निर्माण के सह-डिजाइनर हैं।

what is internet in Hindi

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